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कविता

तुम्हारे लिए

विमलेश त्रिपाठी


छान्ही पर रोज ही बैठती है एक चिड़िया
चहकती है कुछ देर
और लौट जाती है

नीम के पेड़ की ओर
बहुत देर तक बजता है एक सन्नाटा
फिर मन के डैने

फड़फड़ाते हैं
और बार-बार
मैं लौट जाना चाहता हूँ
एक छूट गए घरौंदे में
सिर्फ तुम्हारे लिए

 


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